विज्ञान का इतिहास और फलसफा (History and Philosophy of science)

चंद्रकांत राजू (C. K. Raju)

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला

(Indian Institute of Advanced Study, Shimla)

भूमिका: विज्ञान का इतिहास और शिक्षा प्रणाली

इस विषय का महत्व क्या है?

हमारी आज की शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश हुकूमत के ज़माने से चली आ रही है.

  • आज यह शिक्षा प्रणाली दुनियां भर में लागू है.
  • तो इसमें खराबी क्या है?
  • यह शिक्षा प्रणाली हमें मानसिक रूप से गुलाम बनाती है. (वो कैसे? समझाऊंगा.)
  • एकदम "World class" गुलाम! 😊

इस शिक्षा प्रणाली को विज्ञान के एक झूठे इतिहास के सहारे थोपा गया.

  • मैकौले ने कहा कि विज्ञान पश्चिमी मूल का है.
  • विज्ञान पाने के लिए हमें पश्चिमी शिक्षा प्रणाली को अपनाना चाहिए.

क्या यह सच है?

सच या झूट का पता तब लगता है जब हम जांच करते हैं.

  • इतिहास की जांच प्राथमिक तथ्यों से होती है.
  • लेकिन हमने इस झूठे इतिहास को प्राथमिक तथ्यों के आधार पर कभी नहीं जांचा आज़ादी के बाद भी नहीं
  • केवल पश्चिम (मालिक) में अन्धविश्वास के सहारे मान लिया और आज भी उसी आधार पर मानते हैं.
  • पश्चिम में अंधविशवास हमारी मानसिक गुलामी का एक लक्षण है.

दोष किसका?

  • मैकॉले?
  • हिंदुस्तान में कई लोग इस शिक्षा प्रणाली का दोष मैकौले को देते हैं.
  • यह गलत है.

पहली बात मकौले ब्रिटिश लुटेरा था

  • हमने बगैर तहकीकात के लुटेरे में क्यूं विश्वास किया?
  • यह हमारी मूर्खता थी.
  • मूर्खता करी तो गलती सुधारें
  • उसके बजाय दोष किसी और को देना और भी बड़ी मूर्खता है.

दूसरी बात "आज़ादी" के बाद हमने क्या किया?

  • 73 साल तक
  • हम १ अरब से ज्यादा लोगों ने
  • मैकॉले या शिक्षा प्रणाली के बारे में?
  • क्या विज्ञान के इस झूठे इतिहास कि जाँच करी? क्या आज करने को तैयार हैं.

यह शिक्षा प्रणाली हरेक चीज़ में पश्चिम की अंधी नक़ल करना सिखाती है

  • लेकिन एक बात में हम नक़ल नहीं करते हैं.
  • सभी पश्चिमी विश्वविद्यालयों में विज्ञान के इतिहास और फलसफे का विभाग रहता है
  • लेकिन आज भी किसी हिन्दुस्तानी विश्वविद्यालय में
  • विज्ञान के इतिहास और फलसफे का एक विभाग नहीं है.

इस बात में नक़ल क्यों नहीं?

यह विषय हमारे लिए taboo (वर्जित) है. क्यों?

  • क्योंकि अगर हमारे पास विज्ञान के इतिहास और फलसफे का ज्ञान आ जाए,
  • तो झूठ का भंडा फूट जायेगा है
  • और हम सचमुच में आज़ाद हो सकते है.

ज्ञान नहीं है तो आज इतिहास जानने के लिए क्या करते हैं? गूगल 😊

  • गूगल हमें विकिपीडिया ले जाता है.
  • विकिपीडिया एक  तृतीयक स्त्रोत है,
  • जो केवल पश्चिमी  द्वितीयक स्रोतों को विश्वसनीय मानता है,
  • और प्राथमिक स्त्रोतों को वर्जित करता है.

अतः विकिपीडिया पश्चिम में अंध विश्वास फैलाता है.

  • विकिपीडिया विज्ञान के इस झूठे इतिहास के प्रचार का और एक साधन बन गया है.
  • लेकिन यह चाल ना हम समझे ना उसका निवारण चाहते है.

तसरी बात यह शिक्षा प्रणाली सारी दुनिया में लागू है.

  • जैसे कि ईरान में सूरीनाम में या ब्राजील में
  • कई ऐसी जगहों में जहां न मैकाले पहुंचा ना ब्रिटिश हुकूमत
  • याने कि मैकौले से बहुत बड़ी हस्ती (चर्च) के बारे में हम सोच भी नहीं पाए
  • जिसने सारी दुनिया में अपनी शिक्षा प्रणाली बैठा दी.

अगर बीमारी का सही कारण न पता चले तो उसका इलाज असंभव है.

चर्च शिक्षा प्रणाली

  • संक्षेप में औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली चर्च की शिक्षा प्रणाली पर आधारित है.
  • छठी  सदी से १८७० तक पश्चिमी शिक्षा पर चर्च का वर्चस्व था, एकाधिकार था
  • सिर्फ  मिशन स्कूल ही नहीं  सभी बड़े-बड़े विश्वविद्यालय,  जैसे  पेरिस,  ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज, चर्च ने खड़े किए

चर्च के विश्वविद्यालय

चर्च की उच्च शिक्षा का मूल उद्देश्य  था अच्छे मिशनरी बनाना

  • याने की विद्यार्थी को अंधविश्वासी और आज्ञाकारी  बनाना.
  • मकौले यह बात समझता था
  • लेकिन हम यह बात कभी नहीं समझे
  • पश्चिमी शिक्षा कि वाह-वाही करते रहे

मकौले का असली उद्देश्य - ग़दर रोकना

  • वही मैकॉले ने ब्रिटिश संसद में 1847 में स्पष्ट रूप से कुछ और कहा
  • कि पश्चिमी शिक्षा (क्योंकि वह चर्च की शिक्षा प्रणाली है और लोगों तो आज्ञाकारी बनाती है)
  • (ब्रिटेन में) ग़दर रोखने का सबसे उत्तम और सस्ता तरीका है.
  • याद रहे कि पश्चिमी शिक्षा प्रणाली बड़े तौर पर हिन्दुस्तान में 1857 के ग़दर के बाद ही आई.

कहानियों का सागर

चर्च की सत्ता झूठ पर आधारित है.

झूठ को सच स्थापित करने के लिए बहुत सारी कहानिया सुनाता है.

  • कहानी सुनते समय अविश्वास का निलंबन (suspension of disbelief) होता है
  • जैसे हम मान लेते हैं कि फिल्म का हीरो बीस गुंडों को एक साथ पीट देता है.

कहानी अगर कम उम्र में सुनाई जाय,

  • तो बच्चा कभी सबूत नहीं मांगता
  • और बड़ा होकर उन कहानियों का बचाव करता है जो पहली नज़र में पूरी-तरह काल्पनिक नहीं

सच का अहसास दिलाने के लिए एक कहानी के तार कई दूसरी कहानियों से जुड़े हैं.

  • लेकिन किसी भी कहानी का ठोस सबूत नहीं.

औपनिवेशिक मानसिकता की यही निशानी है

  • बहुत सी बे-बुनियाद कहानियों में दृढ विश्वास
  • एक कहानी के बचाव में दूसरी कहानी सुनाना
  • किसी कहानी का कोई ठोस सबूत नहीं दे पाना.

एक उदाहरण

गणित से जुड़ा एक उदहारण देता हूँ

अलविदा युक्लिड — इतिहास में स्वराज

  • ऐसा दस साल पहले मैंने मलेशिया के शीर्ष विश्वविद्यालय (apex university) में पब्लिक भाषण दिया
  • मलेशिया के उप-शिक्षा मंत्री सभाध्यक्ष थे और पूरे दो घंटे बैठे रहे.
  • "यूक्लिड के लिए कोई ठोस सबूत नहीं", ऐसा इस वक्तव्य में मैंने कहा
  • और दो लाख रुपये के इनाम का ऐलान किया युक्लिड के ठोस सबूत के लिए.

युक्लिड के (प्राथमिक स्त्रोतों से) सबूत के लिए दो लाख के इनाम की घोषणा आप खुद चेक कर सकते हैं

  • वक्तव्य और प्रश्न उत्तर सत्र का विडियो बना जो तीन भाग में है.
  • भाग १ (१ घंटा)
  • भाग २ (१ घंटा २ मिनट)
  • भाग ३ (९ मिनट)

मैंने २ लाख के इनाम का ऐलान क्यों किया?

  • क्योंकि विज्ञान गणित पर आधारित है,
  • और हमारी गणित की शिक्षा प्रणाली युक्लिड के मिथक पर आधारित है.
  • इस मिथक की जांच से हम लगातार इनकार करते हैं: पिछले बीस साल से

लेकिन हम झूठ पर अब भी डटे हुए हैं

  • 2007 में हमारी पाठ्य पुस्तक की लेखिका (और बाद में NCERT निदेशक) के सामने
  • मैंने अपना शोध पत्र पढ़ा "Goodbye Euclid!"
  • युक्लिड की जो फर्जी छवि दिखाई जाती है उसे नस्लवादी स्टीरियोटाइप बताया
  • उस छवि को देखकर मेरे छोटे बेटे ने मजाकिया तौर से पुछा: सभी यूनानी एक समान क्यूं दिखते हैं?

यही व्यंग मैंने लेखिका के सामने किया

  • लेखिका का जवाब: "जैसे सभी सरदारजी एक समान दिखते हैं",
  • और पुस्तक में युक्लिड की छवि बदल दी.
  • अब भी नस्लवादी लेकिन स्टीरियोटाइप नहीं!

2007 ही में मेरी किताब Cultural Foundations of Mathematics के विमोचन के दौरान

  • अखबार में लेख भी लिखा, लेकिन NCERT की पुस्तक में कोई बदलाव नहीं आया.

2012 में मेरी किताब आई Euclid and Jesus: How and why the church changed mathematics and Christianity across two religious wars

  • इसके कवर प्रष्ठ में "युक्लिड" को एक काली महिला दिखाया
  • न कि गोरा पुरुष जैसे हमारी पाठ्य पुस्तक की छवि दिखाती है
  • पाठ्य पुस्तक की छवि कोरा नस्लवाद फैलाती है:
  • बच्चों के दिमाग में कूड़ा करकट भरती है.

जिसका अस्तित्व नहीं उसका रंग और लिंग क्या?

  • जब युक्लिड के अस्तित्व का कोई सबूत नहीं तो उसके रंग या लिंग का क्या सबूत हो सकता है?
  • लेकिन NCERT के नौकरशाहों को जरा भी शर्म नहीं आई
  • कि पाठ्य पुस्तक में मिथक का सबूत पेश करें
  • या पाठ्य पुस्तक से झूठ हटा दें.

असल में युक्लिड का मिथक सब से पहले चर्च ने गढ़ा

१२वीं सदी में क्रुसेड (मज़हबी जंग) के दौरान जब युक्लिड की कथित किताब पहली बार यूरोप पहुंची

  • और 1125 में उसका अनुवाद हुआ.
  • इस झूठे चर्च इतिहास ने लगभग सारे ज्ञान का मूल छोटे से यूनान में बताया (जहाँ के लोग अन्धविश्वासी थे!)
  • क्योंकि क्रिस्तानियों ने सिर्फ यूनानियों को अपना मित्र माना
  • और हमेशा अपने दुश्मन गैर-क्रिस्तानियों को नीचा दिखाना चाहा

पोप ने "Red Indians" के नरसंहार के लिए और अफ्रीका क लोगों को गुलाम बनाने के लिए फतवे निकाले

  • यह कहकर कि वे नीच गैर-क्रिस्तानी थे.
  • बाद में एक समस्या पैदा हुई
  • जब अम्रीका में अफ्रीका के अश्वेत गुलाम धर्मान्तरण कर क्रिस्तानी बन गए.
  • अब उन्हें गुलाम रखने का क्या "नातिक औचित्य" था (चर्च की "नैतिकता" के मुताबिक)?

इस समस्या के "समाधान" के लिए चर्च ने नस्लवाद का निर्माण किया

  • कि सिर्फ गैर क्रिस्तानी ही नहीं अश्वेत क्रिस्तानी भी नीच हैं (बाइबल के मुताबिक)
  • अब भी सारे ज्ञान-विज्ञान का श्रेय यूनानियों को दिया
  • लेकिन इसलिए नहीं कि वे क्रिस्तानियों मित्र माने गए
  • बल्कि इसलिए कि वे श्वेत थे.
  • यह पाठ सिखाने के लिए हमारी पाठ्य पुस्तक युक्लिड की फर्जी छवि दिखाती है;

Martin Bernal. Black Athena: the Fabrication of Ancient Greece 1785-1985

  • नस्लवादी इतिहासकारों ने अश्वेत मिस्त्र के सारे ज्ञान का श्रेय श्वेत यूनानियों को दिया.
  • बगैर सबूत के यही बकवास हमारी NCERT की पाठ्य पुस्तक बड़ी दृढ़ता से बच्चों के दिमाग में भरती है.
  • जिससे कि बच्चे हमेशा पश्चिमी श्वेतों को उच्च समझे और हिन्दुस्तानियों को नीच.
  • माँ-बाप को कोई परवाह नहीं, कुछ भी कचड़ा भर दो बस बच्चे को नौकरी मिल जाय.

युक्लिड काली औरत थी

  • दक्षिण अफ्रीका की पत्रिका में यह बात छपी तो बवाल मच गया
  • (राग्भेदी सरकार से अभी हाल ख़त्म हुई वहां)
  • युक्लिड में लिए सबूत के बदले मेरे इनाम की भी बात छपी.

सेंसर

  • लेख पहले वायरल हुआ, दुनिया भर में,
  • फिर सेंसर हुआ (दुनिया भर में)
  • हुन्द्स्तान में भी, लेकिन एक पत्रिका (वायर) ने वापिस डाल दिया.
  • दुनिया भर में सिर्फ यही सबूत है युक्लिड के लिए जो सच बोले उसे चुप कर दो.

NCERT को दोबारा लिखा, किसी मित्र के सुझाव पर

  • NCERT का लिखित जवाब आया: कई पश्चिमी द्वितीयक स्त्रोत युक्लिड का जिक्र करते हैं
  • यह पश्चिमी शब्द प्रमाण हमारे बच्चों के लिए काफी है,
  • (प्राथमिक स्त्रोतों से सबूत की कोई ज़रुरत नहीं).

याने कि हम अभी तक पश्चिम के गुलाम बने हुए हैं

  • और पश्चिम के कहे की स्वतंत्र रूप से जांच नहीं कर सकते.
  • और NCERT और सरकार चाहती है कि हमारे बच्चे यही सबक सीखें
  • वह कभी इस बात कि कल्पना तक न करें कि पश्चिम/चर्च नें 1500 साल से लगातार झूठा इतिहास गढ़ा है.
  • क्योंकि अगर प्राथमिक तथ्यों के बजाय वह पश्चिमी शब्द प्रमाण पर चलते हैं (विकिपीडिया के सामान) तो पश्चिम कभी झूठ कह ही नहीं सकता.

इतिहास और फलसफा

गर्व कि बात करें

कुछ लोग मुझे कहते हैं कि आप चर्च वगैरह की ज्यादा बात करते हो.

  • इसके बजाय आप सिर्फ हमारी उप्लाम्धियों की बात करो जिससे कि हमको गर्व महसूस होए
  • आज अशिक्षित नेता विद्वानों को बताता है कि वे क्या कहें

हमारी परंपरा में इसे मूर्खता माना जाता है

  • अगर हम पूर्व पक्ष का खंडन किए बगैर अपना पक्ष रखते हैं

लेकिन कुछ लोग इससे भी बढ़कर महा मूर्खता दिखाते हैं.

  • गर्व के लिए इतने उतावले होते हैं कि
  • बगैर कुछ शोध किए, कुछ भी अनाब शनाब ठोक देते हैं
  • जैसे कि प्राचीन भारत में अंतरिक्ष यान था या एटम बम था इत्यादि
  • या वैदिक गणित की बात करते हैं.

मेरे नजरिए में ऐसे लोग हमारी संस्कृति के सबसे बड़े दुश्मन हैं.

  • क्योंकि उनका इरादा चाहे कुछ भी हो
  • वे अपने मूर्ख बयानों से हमारी संस्कृति को बदनाम करते हैं.

खैर उनको छोड़ अब पूर्व पक्ष की बात पर वापस आते हैं.

हम पिछले कई दशकों से सुनते आ रहे हैं की

  • “पाइथागोरस प्रमेय शुल्ब सूत्र में मिलता है, पाइथागोरस के पहले”
  • जैसे कि 2015 में साइंस कांग्रेस के उद्घाटन में हर्षवर्धन जी ने बयान दिया.

यह सच है कि बौधायन इत्यादि शुल्ब सूत्रों में पैथागोरस प्रमेय के सामान सूत्र मिलता है.

लेकिन दो पूर्व पक्षों को नज़रंदाज़ किया

पहली बात मिस्त्र में और इराक में भी इस प्रमेय का ज्ञान पाया जाता है, शुल्ब सूत्रों के भी पहले से

  • और मिस्त्र में बड़े बड़े पिरामिड बने यह इस बात का सबूत है
  • क्या उनके पास ज्यामिति का ज्ञान नहीं था?

दूसरी बात, डींग हाकने के पहले कमसे कम हमारी गणित की नवीं की पाठ्य पुस्तक तो पढ़ लें

  • युक्लिड के अध्याय में वह कहती है कि हिन्दुस्तान मिस्त्र और ईराक की ज्यामिति घटिया किस्म की थी
  • ग्रीक लोगों की ज्यामिती उत्तम थी.
  • और हम सभी को ज्यामिति में उसी कल्पित ग्रीक विधि की नक़ल करना चाहिए.

Quote from the IXth standard NCERT text used across India.

Babylonians and Egyptians used geometry mostly for practical purposes and did very little to develop it as a systematic science.

But in civilisations like Greece, the emphasis was on the reasoning behind why certain constructions work.

The Greeks were interested in establishing the truth of the statements they discovered using deductive reasoning (pp. 78-79).

अगर यह गलत है तो पाठ्य पुस्तक बदलें

  • जो कि हम नहीं करने को तैयार है
  • जैसे कि जावडेकर जी ने पिछले साल बयान दिया.
  • अगर पाठ्य पुस्तक बदलने की हिम्मत नहीं है तो उसे माने और अपना गर्व त्याग दें.

तो पूर्व पक्ष यह है कि पाइथागोरस ने प्रमेय का एक खास (निगमनात्मक) प्रमाण दिया.

  • पाइथागोरस को श्रेय इसलिए दिया जाता है उसने "सही" विधि से प्रमाण दिया
  • सबसे पहले (गलत विधि से) किसने किया उसका कोई महत्व नहीं.

पैथागोरस ने कोई प्रमाण दिया (या उसके अस्तित्व का) कोई सबूत नहीं

  • लेकिन हमारी पाठ्य पुस्तक कहती है कि युक्लिड की कथित किताब में
  • ऐसे निगमन (deduction) पर आधारित प्रमाण मिलते हैं.
  • लेकिन यह बात भी सरासर झूठ है.

निगमन का सही अर्थ

  • तर्क इस्तेमाल नहीं नहीं है
  • प्रत्यक्ष वर्जित करना है.
  • (Deduction in math is NOT about the use of reason
  • but about the prohibition of the empirical).

हमारी पाठ्य पुस्तक बच्चों को बहकाने के लिए एक ही शब्द "reason" इस्तेमाल करती है

  • जिसके दो विपरीत अर्थ निकलते हैं
  • normal reason = reason PLUS facts
  • formal reason = reason MINUS facts

ज्यादातर "नार्मल रीज़न" इस्तेमाल होता है

  • जिसे हिन्दुस्तान में अनुमान कहते थे (अनुमान \(\neq\) अंदाजा)
  • जो तथ्य (facts) से शुरू होता है.
  • लेकिन सभी हिन्दुस्तानी फलसफे प्रत्यक्ष को पहला प्रमाण मानते थे.
  • और प्रत्यक्ष प्रमाण का इस्तेमाल हिन्दुस्तानी गणित में भी होता था (जो मैथमेटिक्स में वर्जित है)

निगमन (formal reason)

  • axioms (= परिकल्पना)से शूरू होता है
  • (axioms \(\neq\) स्वयंसिद्ध).

दो सवाल उठते हैं

  • क्या निगमन पर आधारित सबूत ग्रीक परंपरा में मिलते हैं?
  • नहीं.
  • युक्लिड के पहले प्रमेय का सबूत प्रत्यक्ष प्रमाण पर आधारित है.
  • और चौथे प्रमेय का भी जिस पर पाइथागोरस प्रमेय का सबूत आधारित है.

पश्चिम में यह बात २० वीं सदी से कुबूल है.

  • David Hilbert 1898 Foundations of Geometry ने युक्लिड के सबूत की "गलतियों का सुधार करने की कोशिश में दूसरी किताब लिख दी
  • Bertrand Russell ने युक्लिड की "गलतियों" का जिक्र किया.
  • याने कि निगमन युक्लिड की किताब में नहीं मिलता.

  • हालाँकि निगमन पर आधारित सबूत युक्लिड की किताब में नहीं पाए जाते हैं
  • पश्चिम ने माना कि मिथक सही है. किताब गलत है!
  • युक्लिड का निगमन पर आधारित सबूत देने का इरादा था
  • (अगर युक्लिड का अस्तित्व नहीं तो उसका इरादा कैसे जानते हैं? केवल मिथक पे)

सच तो यह है कि "युक्लिड" की किताब के भाष्यकार भी इसे अफलातून की मजहबी ज्यामिति

  • (या मिस्त्र की रहस्यवादी ज्यामिति) से जोड़ते हैं निगमन से नहीं
  • ठीक यही रहस्यवादी सोच पैथागोरस के अनुयायियों की थी.

लोगों को मैथमेटिक्स में मजहब से मिश्रण की बात चौंका देती है

  • लेकिन मैथमेटिक्स शब्द की व्युत्पत्ति ही मजहब से जुडी है.[mathesis]
  • इसको 2 मिनट में चेक कर सकते हैं, प्राथमिक स्त्रोतों से

गूगल में अफलातून के मैनो की खोज करें

  • Google: “Plato Meno”
  • MIT के Internet Classics archive पर जाएं
  • और Meno में soul (आत्मा)ढूंढे और तीसरी बार जहां पाया जाता है वहां देखें
  • की सुकरात गुलाम लड़के के ज्यामिति के सहज ज्ञान को आत्मा से और पुनर्जन्म से कैसे जोड़ता है

जहां अफलातून और उसके अनुयायियों ने मैथमेटिक्स को मजहब से एक तरह से जोड़ा

  • वहां चर्च ने मैथमेटिक्स को अपनी हठधर्मिता से दूसरी तरह से जोड़ा
  • Christian theology of reason (अक्ल-इ-कलाम) के लिए
  • चर्च ने युक्लिड को अपनी पाठ्य पुस्तक बनाया

दूसरा सवाल: प्रत्यक्ष वर्जित करने का क्या फायदा?

  • अगर गणित विज्ञान के लिए करते हैं तो कोई फायदा नहीं
  • लेकिन चर्च को फायदा ही फायदा है
  • क्योंकि चर्च की हठधर्मिता तथ्यों के खिलाफ है और
  • परिकल्पनाओं (fantasy, postulates) पर आधारित है.

यानी कि यूक्लिड के झूठे इतिहास का खुलासा करने पर मैथमेटिक्स में चर्च का हस्तक्षेप साफ नजर आने लगता है

  • याने कि पश्चिमी शिक्षा गणित के सहारे बच्चों को चर्च की नकल करना सिखाती है
  • ये बात हिम इतना कम समझे कि हमें न केवल मंजूर है,
  • हम उसे दृढ़ता से कायम करने पर तत्पर हैं.

याद रहे मैथमेटिक्स के इस चर्च फलसफे से हमें कोई व्यवहारिक लाभ नहीं है

  • आज भी अगर चांद पर जाना है तो रॉकेट का प्रक्षेप पथ (trajectory) जानने के लिए गणित ही काम आता है मैथमेटिक्स नहीं.

क्या निगमन अचूक है?

पूर्व पक्ष कि दूसरी बात यह है

  • कि निगमन पर आधारित मैथमेटिक्स को उत्तम इसलिए इस विश्वास पर कहा जाता है
  • कि "निगमन" अचूक है
  • यह महज़ अन्धविश्वास है
  • जैसे कि यह मानना कि पोप अचूक है

प्रत्यक्ष में चूक हो सकती है

  • यह सभी मानते हैं
  • जैसे कि रस्सी को सांप समझ लेना (या सांप को रस्सी)
  • लेकिन फिर भी सभी हिन्दुस्तानी फलसफे प्रत्यक्ष को पहला प्रमाण मानते हैं
  • जैसे कि विज्ञान.

लेकिन अनुमान में चूक हो सकती

  • ऐसा लोकायत का मत था
  • क्योंकि शुरू कि परिकल्पना गलत हो सकती है.

चूक वैसे भी हो सकती है

  • बहुत से विद्यार्थी मैथमेटिक्स में फेल होते हैं
  • क्योंकि निगमन में अस्सानी से चूक हो जाती है.
  • कई गलत सबूत विद्वानों ने भी छापे हैं,

  • किसका निगमन अचूक है? नाबेल प्राइज वाले का?
  • बरट्रांड रस्सेल ने ३७८ पृष्ट का सबूत दिया 1+1=2 का.
  • हम किस आधार पर कह सकते हैं कि उस सबूत में कोई चूक नहीं?

शतरंज का खेल पूरी तरह से निगमन पर आधारित है

  • अगर चूक न करें तो कभी हार नहीं हो सकती
  • लेकिन हरेक इंसान हमेशा चूक करता है
  • इसलिए बड़ा से बड़ा शतरंज का खिलाड़ी कंप्यूटर से हमेश हारता है.

सबूत बनाम हिसाब

चर्च ने theology of reason इसलिए अकली-कलाम से अपनाया

  • कि वह मुसलमानों का धर्मान्तरण करना चाहता था
  • और वह न बल के आधार पर कर पाया
  • न बाईबिल के

याने चर्च को सबूत देने की ज़रुरत थी

  • इसलिए सबूत को मैथमेटिक्स का उद्देश्य बताया
  • हिन्दुस्तान में सबूत था (पैथागोरस प्रमेय का भी)
  • लेकिन गणित का उद्देश्य गणना से जुड़ा था.

शुल्ब सूत्र में सही गर्व किस बात पर?

Theorem vs calculation

  • सबसे पहले पैथागोरस प्रमेय (Pythagorean theorem) की बात करना बंद करना चाहिए,
  • क्योंकि axiomatic proof ना ग्रीक परंपरा में था और उसका जरा भी व्यावहारिक फायदा नहीं.
  • इसके बजाय हमें समकोण के गणित (“calculation of the rectangle”) की बात करनी चाहिए.

यह बात सबसे स्पष्ट रूप में मानव शुल्ब सूत्र में आती है, बौधायन इत्यादि में नहीं.

  • यहां समकोण चतुर्भुज और उसके कर्ण की बात हो रही है
  • समकोण त्रिभुज और उसके hypotenuse की नहीं.

फर्क क्या है?

  • व्यवहार में कर्ण का मान निकलना होता है.
  • इसमें वर्गमूल आ जाता है.

अगर

  • \(a\) लम्बाई और \(b\) चौड़ाई है (समकोण चतुर्भुज की)
  • और \(d\) कर्ण है तो
  • \[d = \sqrt{a^2 + b^2}\]

मिस्त्र में, इराक में और शुल्ब सूत्र में वर्ग मूल निकालने की विधि थी.

  • लेकिन ऐसी विधि ग्रीक और रोमन को नहीं मालूम थी.
  • क्योंकि उनका अंकगणित घटिया था
  • उसमे भिन्न लिखने का भी कोई तरीका नहीं था.

अब अगर \(a=1\), \(b=1\),

  • तो \[d = \sqrt {2} = 1.414213562373095...\]
  • \[= 1 + \frac{4}{10} + \frac{1}{100} + \frac{4}{1000} + \ldots\] `
  • एक अनंत श्रेढ़ी है, जिसका एक्साक्ट (exact) योग निकालना भौतिक रूप से असंभव है.

इसलिए शुल्ब सूत्र में \(\sqrt {2}\) को सविशेष कहा है

  • याने कि अवशेष के साथ.

पैथागोरस प्रमेय के deductive proof के बावजूद वह दुनिया में कहीं भी exactly true नहीं है.

  • क्योंकि इसकी मान्यतायें (axioms) इस दुनिया में कहीं भी सच नहीं.
  • और इस गलतफहमी से यूरोपीय नाविक शास्त्र में आई गलतियों से हजारों लोग डूब मरे
  • भास्कर प्रथम कहता है कि पृथ्वी गोल है इसलिए यह प्रमेय लागू नहीं.

यूरोपियों ने वर्गमूल निकालने कि विधि बारहवीं सदी के बाद सीखी

  • जब यूरोप में हिन्दुस्तानी अंकगणित दूसरी बार पहुंचा.
  • और हमारी व्रत्तमिती ("trigonometry") अरब ग्रंथों द्वारा यूरोप पहुंची.

सोलहवीं सदी इसाई में हिंदुस्तान (कोची) से जेसुइट कैलकुलस और व्रत्तमिती फिर यूरोप ले गए

  • लेकिन फिर भी यूरोपीय डूबते गए
  • क्योंकि उन्हें पृथ्वी का व्यास निकालना नहीं आता था.
  • ब्रह्मगुप्त: "भूव्यासस्य अज्ञानात व्यर्थं देशान्तरं".

याने की "पायथागोरस" हिसाब की सही समझ सोलहवीं सदी तक भी यूरोप में नहीं थी.

समाधान क्या है

हमारे अशिक्षित नेताओं ने शिक्षा को आज व्यापार बना दिया है

  • व्यापार की सफलता के लिए ब्रांड चाहिए
  • ज्ञान नहीं (जैसे हमारी सारी कोचिंग क्लासेस सिखाती हैं)
  • लेकिन शिक्षा प्रणाली के बदलाव के लिए ज्ञान ज़रूरी है.
  • तो इसके लिए विद्वानों को सामने आना होगा

यह हिंदुस्तान में शायद मुमकिन नहीं

  • क्योंकि हिनुद्स्तान में विद्वानों कि कद्र नहीं रही
  • लेकिन जो किया जा चूका है वह बताता हूँ.

2011 में मलेशिया में एक हफ्ते की अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला हुई

  • मेरे नेतृत्व में
  • इसमें हमने दुनिया के कई सारे विज्ञान के इतिहास और फलसफे के कोर्सेस पर चिंतन किया
  • और एक नया कोर्स तैयार किया
  • जिसे मैंने कई बार पढाया

विद्यार्थी बहुत खुश थे

और फलसफा पर जोर देकर कोर्स का भाग दो बनाया

  • हिन्दुस्तान में इस तरह को कोर्स एक ही बार चला
  • SGT विश्वविद्यालय में
  • यह प्रश्न पत्र है.

फिर दोबारा नहीं पढाया गया

  • हम गर्व की उटपटांग बातों से अति संतुष्ट हैं.
  • संस्कृति के गंभीर अध्ययन के लिए हिंदुस्तान में बहुत कम जगह है.
  • लेकिन हिंदुस्तान में हो न हो, बाकी दुनिया में ज़रूर होगा.

निष्कर्ष

  • हमें हमारी स्कूली पुस्तकों में घुसे चर्च के झूठे इतिहास की प्राथमिक तथ्यों के आधार पर जांच करनी चाहिए
  • यह समझना चाहिए कि यह झूठा इतिहास चर्च के अन्धविश्वासी फलसफे से जुड़ा है
  • मैथमेटिक्स की शिक्षा में भी
  • उपनिवेशवादी शिक्षा जो अन्धविश्वास सिखाती है उसे जड़ से उखाड़ना चाहिए.